अब जो आया हूँ तो जाने को ना कहना मुझको,
गर जो रूठे हो तो मनाने को ना कहना मुझको,
मैं हूँ इंसान और इंसानियत है निशानी मेरी,
फिर ये पहचान बताने को ना कहना मुझको,
मेरी बरबादियाँ खुद कह रही हैं मेरे अफ़साने,
अब कुछ भी हो कोई दोस्त बनाने को ना कहना मुझको,
वो अधूरे ख्वाब जो आँखों मे अब आते ही नही,
उन्ही ख्वाबों को सज़ाने को ना कहना मुझको.
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बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।
ReplyDeleteमैं हूँ इंसान और इंसानियत है निशानी मेरी,
ReplyDeleteफिर ये पहचान बताने को ना कहना मुझको,
सुन्दर.........
वो अधूरे ख्वाब जो आँखों मे अब आते ही नही,
ReplyDeleteउन्ही ख्वाबों को सज़ाने को ना कहना मुझको.
बहुत सुन्दर.....
मेरी बरबादियाँ खुद कह रही हैं मेरे अफ़साने,
ReplyDeleteअब कुछ भी हो कोई दोस्त बनाने को ना कहना मुझको,
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waah arpit ji....dil ko chhu gai aapki puri ghazal
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
मासूम ग़ज़ल..बहर का ख्याल रखना चाहिए आपको...इससे ग़ज़ल का सौंदर्य नष्ट हो जाता है!! भाव सुंदर है!!
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