Monday, May 28, 2012

सत्ता का संतुलन

सत्ता के संतुलन को बनाए रखने के लिए राजनीतिक दल क्या क्या नही करते, वादे करना लोगों को गुमराह करना और अपना काम कर लेना, धाँधली, घोटाला, हत्या या फरेब, ये सभी एक अच्छे राज नेता के गुण माने जाते हैं. भारत की आज़ादी के बाद से लेकर अब तक राज नेता बलवान होते गये हैं और जनता कमजोर, मगर फिर भी हम इसे एक लोकतांत्रिक देश मानते हैं. हिंदू-मुस्लिम दंगे, आरक्षण पर बवाल, घूसखोरी, रिश्वत ये सब सत्ता के संतुलन को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घातक हथियार है.

सोचने की बात है की जो देश भारत के बाद आज़ाद हुए हैं वो तरक्की करते रहे और हम पिछड़ते जा रहे हैं, तो सत्ता का संतुलन कहाँ डगमगा रहा है, भारत मे वर्तमान समस्या ये है की भारत का नेतृत्व प्रभावशाली नही है, केंद्र सरकार के संबंध गैर कांग्रेसी राज्यों के साथ अच्छे नही हैं,यानी की संपूर्ण देश को दो हिस्सों मे बाँट कर शासन किया जा रहा है और जब तक ऐसा चलता रहेगा भारत कभी विकसित नही हो सकेगा.२०११ तक हर साल भारत मे सबसे विकाशील प्रमुख पाँच राज्यों के नाम घोषित किए जाते थे परंतु जब हर बार ये नाम गैर कॉंग्रेसी राज्यों के होने लगे तो सरकार ने इस प्रक्रिया पर ही रोक लगा दी.

हाल ही मे हमारे प्रधानमंत्री जी ने अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने का जश्न मनाया है, खुद अपनी ही पीठ थपथपा कर कहा की हम प्रगती के मार्ग पर हैं, इस मौके पर उन्होने अपना तीन साल का रिपोर्ट कार्ड भी प्रस्तुत किया, जाहिर है वो रिपोर्ट कार्ड मैडम जी ने बनाई होगी, तभी उन्होने उस कार्ड मे "नक्सलवाद" और "कुपोषण" जिसे स्वयं प्रधान मंत्री जी ने देश की सबसे बड़ी समस्या बताया था उसका ज़िक्र तक नही किया गया.

हमारे विदेश मंत्री जो विदेशों मे हमारे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं यू.एन. की सभा मे जाकर दूसरे देश का भाषण पढ़ते हैं तो सरकार इसे विपक्ष की चाल बता कर संसद मे बैठक करती है.

इसके अलावा आज कल टीवी पर निर्मल दरबार की बड़ी चर्चा है, मगर हमारे देश की सरकार मे उपर से नीचे तक हज़ारो निर्मल बाबा है जो कहते हैं की हमें वोट दो तो कृपा हो जाएगी. अब निर्मल बाबा पर तो केस चल रहा है बाकी के बाबओं का फ़ैसला जनता की अदालत करेगी.