Thursday, September 23, 2010

मुसाफिर

१  
वो मस्त मौला टैक्सी वाला अपनी टैक्सी मे मराठी अख़बार हाथ मे पकड़े बैठा था तभी के किसी ने उसे पुकारा 
"भैया कुर्ला चलोगे?"
"किधर से आएला है भाऊ?" 
"बिहार से"
"वो टैक्सी मे बोर्ड नही दिखता क्या? बिहारी नॉट अलोड अभी कल्टी कर इधर से चल"
२ 
थोड़ी देर बाद वही मुसाफिर दौड़ता हुआ उसके पास आया "भैया देखो उधर एक औरत का एक्सीडेंट हो गया है उसे अस्पताल पहुँचा दो"
"ए अपुन बोला ना बिहारी नही चाहिए" 
"अरे भैया वो मर जाएगी" 
"पाँच सौ देता है क्या?"
"इतने पैसे तो नही हैं हमारे पास"
"तो फिर अपुन का टाइम खोटी मत कर चल"
"भैया उसे अस्पताल पहुँचा दो नही तो मर जाएगी"
टैक्सी चालू हुई और आगे बढ़ गई वो मुसाफिर निराश सा उसे दूर जाते देख रहा था.
३ 
करीब एक घंटे बाद टैक्सी वाले को फ़ोन आया 
"काय भाऊ? काई झाला?"
"रघु तुम्हारी माँ अस्पताल में आखिरी साँसे गिन रही है डॉक्टर बोला की थोडा जल्दी लाते तो बच जाती"
"मगर ये कैसे हुआ भाऊ?"
"कही पर एक्सीडेंट हुआ है तुम जल्दी से आ जाओ"
टैक्सी वाला तेजी से अस्पताल पहुंचा जहाँ वही मुसाफिर उसकी माँ के पार्थिव शरीर के पास बैठा रो रहा था. 

11 comments:

  1. अर्पित भाई! ई पोस्ट है कि तमाचा.. हम त सोचिए नहीं पा रहे हैं कि बिहारी होने पर खुस होएँ कि मराठी पर गुस्सा करें या दुःख मनाएँ..काहे कि मरने वाली माँ है, घृणा करने वाला राजनीतिज्ञों का कठपुतली है अऊर इंसान है ऊ जो अपना धर्म निभाया, मानवता का.

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  2. सच्‍चे अर्थों मे लघुकथा। लघुकथा के सारे मापदण्‍डों को पूरा करती हूई। बधाई।

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  3. बहुत तरीके से रखी है बात को आपने, हालाँकि तरीका नया नहीं है . कथ्य अवश्य नया है .

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  4. बहुत ही संवेदनशील ...अच्छी लघुकथा ..

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  5. क्या सन्नाट पोस्ट है और झन्नाटेदार खींचा है पूरा धो दिया ....

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  6. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया

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  7. Hi, Really great effort. Everyone must read this article. Thanks for sharing.

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